Friday, 1 November 2013
Thursday, 11 July 2013
Tuesday, 2 July 2013
बाल गंगाधर तिलकजी के बाल्यकाल की यह घटना हैः
बाल गंगाधर तिलकजी के बाल्यकाल की यह
घटना हैः
एक बार वे घर पर अकेले ही बैठे थे
कि अचानक उन्हें चौपड़ खेलने
की इच्छा हुई। किंतु अकेले चौपड़ कैसे खेलते?
अतः उन्होंने घर के खंभे
को अपना साथी बनाया। वे दायें हाथ से खंभे
के लिए और बायें हाथ से अपने लिए खेलने
लगे। इस प्रकार खेलते-खेलते वे दो बार हार
गये।
दादी माँ दूर से यह सब नजारा देख रही थीं।
हँसते हुए वे बोलीः
"धत् तेरे की... एक खंभे से हार गया?"
तिलकजीः "हार गया तो क्या हुआ?
मेरा दायाँ हाथ खंभे के हवाले था और मुझे
दायें हाथ से खेलने की आदत है। इसीलिए
खंभा जीत गया, नहीं तो मैं जीतता।"
कैसा अदभुत था तिलकजी का न्याय ! जिस
हाथ से अच्छे से खेल सकते थे उससे खंभे के
पक्ष में खेले और हारने पर सहजता से हार
भी स्वीकार कर ली।
महापुरुषों का बाल्यकाल भी नैतिक गुणों से
भरपूर ही हुआ करता है।
इसी प्रकार एक बार छः मासिक परीक्षा में
तिलकजी ने प्रश्नपत्र के सभी प्रश्नों के
सही जवाब लिख डाले।
जब परीक्षाफल घोषित हुआ तब
विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए
भी बाँटे जा रहे थे। जब तिलक
जी की कक्षा की बारी आयी तब पहले नंबर
के लिए तिलकजी का नाम घोषित किया गया।
ज्यों ही अध्यापक तिलकजी को बुलाकर
इनाम देने लगे, त्यों ही बालक तिलकजी रोने
लगे।
यह देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ ! जब
अध्यापक ने तिलकजी से रोने का कारण
पूछा तो वे बोलेः
"अध्यापक जी ! सच बात तो यह है
कि सभी प्रश्नों के जवाब मैंने नहीं लिखे हैं।
आप सारे प्रश्नों के सही जवाब लिखने के
लिए मुझे इनाम दे रहे हैं, किंतु एक प्रश्न
का जवाब मैंने अपने मित्र से पूछकर
लिखा था। अतः इनाम का वास्तविक हकदार
मैं नहीं हूँ।"
अध्यापक प्रसन्न होकर तिलकजी को गले
लगाकर बोलेः
"बेटा ! भले तुम्हारा पहले नंबर के लिए
इनाम पाने का हक नहीं बनता, किंतु यह
इनाम अब तुम्हें सच्चाई के लिए देता हूँ।"
ऐसे सत्यनिष्ठ, न्यायप्रिय और ईमानदार
बालक ही आगे चलकर महान कार्य कर पाते
हैं।
प्यारे विद्यार्थियो ! तुम ही भावी भारत के
भाग्य विधाता हो। अतः अभी से अपने जीवन
में सत्यपालन, ईमानदारी, संयम, सदाचार,
न्यायप्रियता आदि गुणों को अपना कर
अपना जीवन महान बनाओ। तुम्हीं में से
कोई लोकमान्य तिलक तो कोई सरदार
वल्लभभाई पटेल, कोई शिवाजी तो कोई
महाराणा प्रताप जैसा बन सकता है।
तुम्हीं में से कोई ध्रुव, प्रह्लाद, मीरा,
मदालसा का आदर्श पुनः स्थापित कर
सकता है।
उठो, जागो और अपने इतिहास-प्रसिद्ध
महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने
जीवन को भी दिव्य बनाने के मार्ग पर
अग्रसर हो जाओ.... भगवत्कृपा और संत-
महापुरुषों के आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं। —बाल गंगाधर तिलकजी के बाल्यकाल की यह
घटना हैः
एक बार वे घर पर अकेले ही बैठे थे
कि अचानक उन्हें चौपड़ खेलने
की इच्छा हुई। किंतु अकेले चौपड़ कैसे खेलते?
अतः उन्होंने घर के खंभे
को अपना साथी बनाया। वे दायें हाथ से खंभे
के लिए और बायें हाथ से अपने लिए खेलने
लगे। इस प्रकार खेलते-खेलते वे दो बार हार
गये।
दादी माँ दूर से यह सब नजारा देख रही थीं।
हँसते हुए वे बोलीः
"धत् तेरे की... एक खंभे से हार गया?"
तिलकजीः "हार गया तो क्या हुआ?
मेरा दायाँ हाथ खंभे के हवाले था और मुझे
दायें हाथ से खेलने की आदत है। इसीलिए
खंभा जीत गया, नहीं तो मैं जीतता।"
कैसा अदभुत था तिलकजी का न्याय ! जिस
हाथ से अच्छे से खेल सकते थे उससे खंभे के
पक्ष में खेले और हारने पर सहजता से हार
भी स्वीकार कर ली।
महापुरुषों का बाल्यकाल भी नैतिक गुणों से
भरपूर ही हुआ करता है।
इसी प्रकार एक बार छः मासिक परीक्षा में
तिलकजी ने प्रश्नपत्र के सभी प्रश्नों के
सही जवाब लिख डाले।
जब परीक्षाफल घोषित हुआ तब
विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए
भी बाँटे जा रहे थे। जब तिलक
जी की कक्षा की बारी आयी तब पहले नंबर
के लिए तिलकजी का नाम घोषित किया गया।
ज्यों ही अध्यापक तिलकजी को बुलाकर
इनाम देने लगे, त्यों ही बालक तिलकजी रोने
लगे।
यह देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ ! जब
अध्यापक ने तिलकजी से रोने का कारण
पूछा तो वे बोलेः
"अध्यापक जी ! सच बात तो यह है
कि सभी प्रश्नों के जवाब मैंने नहीं लिखे हैं।
आप सारे प्रश्नों के सही जवाब लिखने के
लिए मुझे इनाम दे रहे हैं, किंतु एक प्रश्न
का जवाब मैंने अपने मित्र से पूछकर
लिखा था। अतः इनाम का वास्तविक हकदार
मैं नहीं हूँ।"
अध्यापक प्रसन्न होकर तिलकजी को गले
लगाकर बोलेः
"बेटा ! भले तुम्हारा पहले नंबर के लिए
इनाम पाने का हक नहीं बनता, किंतु यह
इनाम अब तुम्हें सच्चाई के लिए देता हूँ।"
ऐसे सत्यनिष्ठ, न्यायप्रिय और ईमानदार
बालक ही आगे चलकर महान कार्य कर पाते
हैं।
प्यारे विद्यार्थियो ! तुम ही भावी भारत के
भाग्य विधाता हो। अतः अभी से अपने जीवन
में सत्यपालन, ईमानदारी, संयम, सदाचार,
न्यायप्रियता आदि गुणों को अपना कर
अपना जीवन महान बनाओ। तुम्हीं में से
कोई लोकमान्य तिलक तो कोई सरदार
वल्लभभाई पटेल, कोई शिवाजी तो कोई
महाराणा प्रताप जैसा बन सकता है।
तुम्हीं में से कोई ध्रुव, प्रह्लाद, मीरा,
मदालसा का आदर्श पुनः स्थापित कर
सकता है।
उठो, जागो और अपने इतिहास-प्रसिद्ध
महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने
जीवन को भी दिव्य बनाने के मार्ग पर
अग्रसर हो जाओ.... भगवत्कृपा और संत-
महापुरुषों के आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं। —
घटना हैः
एक बार वे घर पर अकेले ही बैठे थे
कि अचानक उन्हें चौपड़ खेलने
की इच्छा हुई। किंतु अकेले चौपड़ कैसे खेलते?
अतः उन्होंने घर के खंभे
को अपना साथी बनाया। वे दायें हाथ से खंभे
के लिए और बायें हाथ से अपने लिए खेलने
लगे। इस प्रकार खेलते-खेलते वे दो बार हार
गये।
दादी माँ दूर से यह सब नजारा देख रही थीं।
हँसते हुए वे बोलीः
"धत् तेरे की... एक खंभे से हार गया?"
तिलकजीः "हार गया तो क्या हुआ?
मेरा दायाँ हाथ खंभे के हवाले था और मुझे
दायें हाथ से खेलने की आदत है। इसीलिए
खंभा जीत गया, नहीं तो मैं जीतता।"
कैसा अदभुत था तिलकजी का न्याय ! जिस
हाथ से अच्छे से खेल सकते थे उससे खंभे के
पक्ष में खेले और हारने पर सहजता से हार
भी स्वीकार कर ली।
महापुरुषों का बाल्यकाल भी नैतिक गुणों से
भरपूर ही हुआ करता है।
इसी प्रकार एक बार छः मासिक परीक्षा में
तिलकजी ने प्रश्नपत्र के सभी प्रश्नों के
सही जवाब लिख डाले।
जब परीक्षाफल घोषित हुआ तब
विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए
भी बाँटे जा रहे थे। जब तिलक
जी की कक्षा की बारी आयी तब पहले नंबर
के लिए तिलकजी का नाम घोषित किया गया।
ज्यों ही अध्यापक तिलकजी को बुलाकर
इनाम देने लगे, त्यों ही बालक तिलकजी रोने
लगे।
यह देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ ! जब
अध्यापक ने तिलकजी से रोने का कारण
पूछा तो वे बोलेः
"अध्यापक जी ! सच बात तो यह है
कि सभी प्रश्नों के जवाब मैंने नहीं लिखे हैं।
आप सारे प्रश्नों के सही जवाब लिखने के
लिए मुझे इनाम दे रहे हैं, किंतु एक प्रश्न
का जवाब मैंने अपने मित्र से पूछकर
लिखा था। अतः इनाम का वास्तविक हकदार
मैं नहीं हूँ।"
अध्यापक प्रसन्न होकर तिलकजी को गले
लगाकर बोलेः
"बेटा ! भले तुम्हारा पहले नंबर के लिए
इनाम पाने का हक नहीं बनता, किंतु यह
इनाम अब तुम्हें सच्चाई के लिए देता हूँ।"
ऐसे सत्यनिष्ठ, न्यायप्रिय और ईमानदार
बालक ही आगे चलकर महान कार्य कर पाते
हैं।
प्यारे विद्यार्थियो ! तुम ही भावी भारत के
भाग्य विधाता हो। अतः अभी से अपने जीवन
में सत्यपालन, ईमानदारी, संयम, सदाचार,
न्यायप्रियता आदि गुणों को अपना कर
अपना जीवन महान बनाओ। तुम्हीं में से
कोई लोकमान्य तिलक तो कोई सरदार
वल्लभभाई पटेल, कोई शिवाजी तो कोई
महाराणा प्रताप जैसा बन सकता है।
तुम्हीं में से कोई ध्रुव, प्रह्लाद, मीरा,
मदालसा का आदर्श पुनः स्थापित कर
सकता है।
उठो, जागो और अपने इतिहास-प्रसिद्ध
महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने
जीवन को भी दिव्य बनाने के मार्ग पर
अग्रसर हो जाओ.... भगवत्कृपा और संत-
महापुरुषों के आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं। —बाल गंगाधर तिलकजी के बाल्यकाल की यह
घटना हैः
एक बार वे घर पर अकेले ही बैठे थे
कि अचानक उन्हें चौपड़ खेलने
की इच्छा हुई। किंतु अकेले चौपड़ कैसे खेलते?
अतः उन्होंने घर के खंभे
को अपना साथी बनाया। वे दायें हाथ से खंभे
के लिए और बायें हाथ से अपने लिए खेलने
लगे। इस प्रकार खेलते-खेलते वे दो बार हार
गये।
दादी माँ दूर से यह सब नजारा देख रही थीं।
हँसते हुए वे बोलीः
"धत् तेरे की... एक खंभे से हार गया?"
तिलकजीः "हार गया तो क्या हुआ?
मेरा दायाँ हाथ खंभे के हवाले था और मुझे
दायें हाथ से खेलने की आदत है। इसीलिए
खंभा जीत गया, नहीं तो मैं जीतता।"
कैसा अदभुत था तिलकजी का न्याय ! जिस
हाथ से अच्छे से खेल सकते थे उससे खंभे के
पक्ष में खेले और हारने पर सहजता से हार
भी स्वीकार कर ली।
महापुरुषों का बाल्यकाल भी नैतिक गुणों से
भरपूर ही हुआ करता है।
इसी प्रकार एक बार छः मासिक परीक्षा में
तिलकजी ने प्रश्नपत्र के सभी प्रश्नों के
सही जवाब लिख डाले।
जब परीक्षाफल घोषित हुआ तब
विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए
भी बाँटे जा रहे थे। जब तिलक
जी की कक्षा की बारी आयी तब पहले नंबर
के लिए तिलकजी का नाम घोषित किया गया।
ज्यों ही अध्यापक तिलकजी को बुलाकर
इनाम देने लगे, त्यों ही बालक तिलकजी रोने
लगे।
यह देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ ! जब
अध्यापक ने तिलकजी से रोने का कारण
पूछा तो वे बोलेः
"अध्यापक जी ! सच बात तो यह है
कि सभी प्रश्नों के जवाब मैंने नहीं लिखे हैं।
आप सारे प्रश्नों के सही जवाब लिखने के
लिए मुझे इनाम दे रहे हैं, किंतु एक प्रश्न
का जवाब मैंने अपने मित्र से पूछकर
लिखा था। अतः इनाम का वास्तविक हकदार
मैं नहीं हूँ।"
अध्यापक प्रसन्न होकर तिलकजी को गले
लगाकर बोलेः
"बेटा ! भले तुम्हारा पहले नंबर के लिए
इनाम पाने का हक नहीं बनता, किंतु यह
इनाम अब तुम्हें सच्चाई के लिए देता हूँ।"
ऐसे सत्यनिष्ठ, न्यायप्रिय और ईमानदार
बालक ही आगे चलकर महान कार्य कर पाते
हैं।
प्यारे विद्यार्थियो ! तुम ही भावी भारत के
भाग्य विधाता हो। अतः अभी से अपने जीवन
में सत्यपालन, ईमानदारी, संयम, सदाचार,
न्यायप्रियता आदि गुणों को अपना कर
अपना जीवन महान बनाओ। तुम्हीं में से
कोई लोकमान्य तिलक तो कोई सरदार
वल्लभभाई पटेल, कोई शिवाजी तो कोई
महाराणा प्रताप जैसा बन सकता है।
तुम्हीं में से कोई ध्रुव, प्रह्लाद, मीरा,
मदालसा का आदर्श पुनः स्थापित कर
सकता है।
उठो, जागो और अपने इतिहास-प्रसिद्ध
महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने
जीवन को भी दिव्य बनाने के मार्ग पर
अग्रसर हो जाओ.... भगवत्कृपा और संत-
महापुरुषों के आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं। —

भगत सिंह के जीवन से जुडी कुछ महत्वपूर्ण बातें -
भगत सिंह के जीवन से जुडी कुछ महत्वपूर्ण
बातें -
१. भगतसिंह ने एक राष्ट्रवादी और
देशभक्त परिवार में जन्म लिया था !!
भगतसिंह के चाचा अजीत सिंह एक लेखक
तथा एक देशभक्त नागरिक थे !! उनके
पिता भी एक बहुत बडे देशभक्त थे !!
उनका भगतसिंह के जीवन पर असर पड़ा !!
उनके बारे में प्रसिद्ध है
कि वो किताबों को पढते
नहीं बल्कि निगलते थे !!
२. भगत सिंह ने ५ साल से लेकर साढ़े 23
साल की उम्र तक (लगभग 18 वर्ष तक)
पूरी तरह से सजग और चैतन्य इंसान
की तरह जिया !!
३. भगत सिंह के लिए देश का मतलब देश
की मिट्टी से, इसके शहर-गाँव से नहीं था,
बल्कि देश की जनता से था !! इसीलिए
भगत सिंह मानते थे कि देश पर चाहे
कालों का राज रहे या गोरों का, जब तक
यह व्यवस्था नहीं बदलेगी तब तक भारत
की हालत में सुधार नहीं होगा !! भगत
सिंह पहले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनमें
सबसे पहले सामाजिक चेतना जागी थी !!
इनसे पहले के क्रांतिकारी 'भारत
माता की जय' तक सीमित थी !!
४. गाँधी का रास्ता अंग्रेजों को बहुत
अच्छा लगता था,
क्योंकि गाँधी अंग्रेजों के शोषण को खत्म
करने के लिए कोई कोशिश नहीं कर रहे
थे !! अंग्रेज़ों को मालूम था कि यदि भगत
सिंह ज़िंदा रहे, या भगत सिंह का विचार
ज़िंदा रहा तो यहाँ की जनता हमसे
शोषण का हिसाब माँगेंगी !! इसीलिए
अंग्रेजों ने भारत को विभाजन
का रास्ता का दिखाया जिसका फायदा
मेरा मानना है कि विभाजन
का जिम्मेदार अकेले
जिन्ना नहीं बल्कि उसके साथ-साथ
ब्रिटिश सरकार और गाँधी-नेहरु जैसे लोग
भी थे !! गाँधी इसलिए क्योंकि इन्होंने
उस समय कुछ नहीं बोला जब उन्हें
बोलना चाहिए था !! गाँधी यदि पटेल-
नेहरू की सत्तालोलुपता को समझकर
विभाजन को रोक लेते तो आज देश
की दशा कुछ और ही होती !!
५. भगत सिंह ने एक महान काम यह
भी किया कि सबकुछ अपनी डायरी में
लिखकर रखा !! जिससे आज भगत सिंह के
वास्तविक दस्तावेज और असलियत हमारे
सामने है !! भगत ने फाँसी से मरने से पहले
भी लिखा कि मेरे मरने के बाद
क्या करना है !! भगत सिंह पहले ऐसे
क्रांतिकारी थे, जो कहते थे कि देश
को आज़ाद होने के लिए
मेरा मरना ज़रूरी है !! भगत सिंह ने
अपनी फाँसी खुद चुनी थी !! यहाँ पर
भी मेरा मानना है कि अगर गाँधी चाहते
तो उन्हें बचा सकते थे मगर वो अपने
ढोंगी अहिंसा नीति के दंभ में चूर थे !!
६. भगत सिंह 'बम-बारूद' के खिलाफ थे !! वे
कहते थे कि यदि पुलिस जनता पर प्रहार
नहीं करेगी, तो जनता पर भी उन पर
पत्थर नहीं फेंकेगी, पुलिस-स्टेशन को बम से
नहीं उड़ायेगी !! हिंसा की शुरूआत
हमेशा पुलिस/स्टेट/ब्रिटिश करती थी !!
७. आज तक पूरी दुनिया में भगतसिंह से कम
उम्र में किताबें पढ़कर अपने मौलिक
विचारों का प्रवर्तन करने की कोशिश
किसी ने नहीं की !!
८. हिन्दुस्तान में सबसे अधिक किताबें
भगत सिंह पर लिखी गई हैं !! भारत
की लगभग ��र ���ाषा में भगत सिंह
के ऊपर किताबें हैं !!
९. भगत सिंह यद्यपि रक्तपात के पक्षधर
नहीं थे परन्तु वे कार्ल मार्क्स के
सिद्धान्तों से पूरी तरह प्रभावित थे !!
इसी कारण से उन्हें
पूँजीपतियों तथा अंग्रेजों की मजदूरों के
प्रति शोषण की नीति पसन्द
नहीं आती थी !! भगत सिंह चाहते थे
कि अँग्रेजों को पता चलना चाहिये
कि हिन्दुस्तानी जाग चुके हैं और उनके हृदय
में ऐसी नीतियों के प्रति आक्रोश है मगर
उसमें कोई खून-खराबा ना हो !! ८ अप्रैल,
१९२९ को उन्होंने बटुकेश्वर नाथ के साथ
मिल कर केन्द्रीय असेम्बली में एक ऐसे
स्थान पर बम फेंका जहाँ कोई मौजूद न
था !! बम फेंकने के बाद भगत सिंह चाहते
तो भाग भी सकते थे पर उन्होंने पहले
ही सोच रखा था कि उन्हें दण्ड स्वीकार
है चाहें वह फाँसी ही क्यों न हो !! बम
फटने के बाद उन्होंने "इंकलाब
जिन्दाबाद !! साम्राज्यवाद
मुर्दाबाद !!" का नारा लगाया और अपने
साथ लाये हुए पर्चे हवा में उछाल दिये !!
इसके कुछ ही देर बाद पुलिस आ गयी और
दोनों को ग़िरफ़्तार कर लिया गया !!
१०. जेल के अंदर जब कैदियों को ठीक
भोजन नहीं मिलता था और सुविधाएं
जो मिलनी चाहिए थीं, नहीं मिलती थीं,
तो भगतसिंह ने आमरण अनशन किया !!
भगत सिंह व उनके साथियों ने ६४
दिनों तक भूख हडताल की !! उनके एक
साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख
हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिये थे !!
अंततः अंग्रेजों को झुकना पडा !!
११. भगतसिंह को गांधी जी का धीरे धीरे
चलने वाला रास्ता पसंद नहीं था !!
लेकिन भगतसिंह हिंसा के रास्ते पर
नहीं थे !! उनके भरी अदालत में जिस बयान
के कारण उनको फांसी की सजा मिली,
उतना बेहतर बयान आज तक हिंदुस्तान के
किसी भी राजनीतिक कैदी ने
नहीं दिया !!
१२. जब भगत सिंह अंतिम बार अपने
परिवार से मिलें थे, उस समय उन्हें यकीन
हो गया था कि ये उनकी अंतिम मुलाकात
है !! उन्होंने अपने मां से कहा, “बेबेजी,
दादाजी अब ज्यादा दिन तक
नहीं जियेंगे !! आप बंगा जाकर इनके पास
ही रहना !!” सबसे उन्होंने अलग-अलग बात
की !! सबको धैर्य बंधाया, सांत्वना दी !!
अंत में मां को पास बुलाकर हंसते-हंसते
मस्ती भरे स्वर में कहा, ‘‘लाश लेने आप मत
आना !! कुलबीर को भेज देना !! कहीं आप
रो पड़ी तो लोग कहेंगे कि भगत सिंह
की मां रो रही है !! इतना कहकर वे इतने
जोर से हंसे कि जेल अधिकारी उन्हें
फटी आंखों से देखते रह गए !!
१३. फांसी के फंदे पर चढ़ने का फरमान
पहुंचने के बाद जब जल्लाद उनके पास
आया तब वो “राम प्रसाद बिस्मिल”
की जीवनी पढ रहे थे(कुछ
लोगों का मानना है कि वो लेनिन
की जीवनी पढ रहे थे) !! उन्होंने
बिना सिर उठाए हुए उससे
कहा 'ठहरो भाई, मैं राम प्रसात
बिस्मिल की जीवनी पढ़ रहा हूं !! एक
क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल
रहा है !! थोड़ा रुको !!' ऐसा इंसान जिसे
कुछ पलों के बाद फांसी होने वाली है उसके
बावजूद वो किताबें पढ़ रहा है, ये
कल्पना कर पाना भी बेहद मुश्किल है !!
१४. अंततः फांसी के निर्धारित समय से १
दिन पहले २३ मार्च १९३१ को शाम में
करीब ७ बजकर ३३ मिनट पर भगत सिंह
तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु
को फाँसी दे दी गई !! फाँसी पर जाते
समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे -
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे !!
मेरा रँग दे बसन्ती चोला !! माय रँग दे
बसन्ती चोला !!

बातें -
१. भगतसिंह ने एक राष्ट्रवादी और
देशभक्त परिवार में जन्म लिया था !!
भगतसिंह के चाचा अजीत सिंह एक लेखक
तथा एक देशभक्त नागरिक थे !! उनके
पिता भी एक बहुत बडे देशभक्त थे !!
उनका भगतसिंह के जीवन पर असर पड़ा !!
उनके बारे में प्रसिद्ध है
कि वो किताबों को पढते
नहीं बल्कि निगलते थे !!
२. भगत सिंह ने ५ साल से लेकर साढ़े 23
साल की उम्र तक (लगभग 18 वर्ष तक)
पूरी तरह से सजग और चैतन्य इंसान
की तरह जिया !!
३. भगत सिंह के लिए देश का मतलब देश
की मिट्टी से, इसके शहर-गाँव से नहीं था,
बल्कि देश की जनता से था !! इसीलिए
भगत सिंह मानते थे कि देश पर चाहे
कालों का राज रहे या गोरों का, जब तक
यह व्यवस्था नहीं बदलेगी तब तक भारत
की हालत में सुधार नहीं होगा !! भगत
सिंह पहले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनमें
सबसे पहले सामाजिक चेतना जागी थी !!
इनसे पहले के क्रांतिकारी 'भारत
माता की जय' तक सीमित थी !!
४. गाँधी का रास्ता अंग्रेजों को बहुत
अच्छा लगता था,
क्योंकि गाँधी अंग्रेजों के शोषण को खत्म
करने के लिए कोई कोशिश नहीं कर रहे
थे !! अंग्रेज़ों को मालूम था कि यदि भगत
सिंह ज़िंदा रहे, या भगत सिंह का विचार
ज़िंदा रहा तो यहाँ की जनता हमसे
शोषण का हिसाब माँगेंगी !! इसीलिए
अंग्रेजों ने भारत को विभाजन
का रास्ता का दिखाया जिसका फायदा
मेरा मानना है कि विभाजन
का जिम्मेदार अकेले
जिन्ना नहीं बल्कि उसके साथ-साथ
ब्रिटिश सरकार और गाँधी-नेहरु जैसे लोग
भी थे !! गाँधी इसलिए क्योंकि इन्होंने
उस समय कुछ नहीं बोला जब उन्हें
बोलना चाहिए था !! गाँधी यदि पटेल-
नेहरू की सत्तालोलुपता को समझकर
विभाजन को रोक लेते तो आज देश
की दशा कुछ और ही होती !!
५. भगत सिंह ने एक महान काम यह
भी किया कि सबकुछ अपनी डायरी में
लिखकर रखा !! जिससे आज भगत सिंह के
वास्तविक दस्तावेज और असलियत हमारे
सामने है !! भगत ने फाँसी से मरने से पहले
भी लिखा कि मेरे मरने के बाद
क्या करना है !! भगत सिंह पहले ऐसे
क्रांतिकारी थे, जो कहते थे कि देश
को आज़ाद होने के लिए
मेरा मरना ज़रूरी है !! भगत सिंह ने
अपनी फाँसी खुद चुनी थी !! यहाँ पर
भी मेरा मानना है कि अगर गाँधी चाहते
तो उन्हें बचा सकते थे मगर वो अपने
ढोंगी अहिंसा नीति के दंभ में चूर थे !!
६. भगत सिंह 'बम-बारूद' के खिलाफ थे !! वे
कहते थे कि यदि पुलिस जनता पर प्रहार
नहीं करेगी, तो जनता पर भी उन पर
पत्थर नहीं फेंकेगी, पुलिस-स्टेशन को बम से
नहीं उड़ायेगी !! हिंसा की शुरूआत
हमेशा पुलिस/स्टेट/ब्रिटिश करती थी !!
७. आज तक पूरी दुनिया में भगतसिंह से कम
उम्र में किताबें पढ़कर अपने मौलिक
विचारों का प्रवर्तन करने की कोशिश
किसी ने नहीं की !!
८. हिन्दुस्तान में सबसे अधिक किताबें
भगत सिंह पर लिखी गई हैं !! भारत
की लगभग ��र ���ाषा में भगत सिंह
के ऊपर किताबें हैं !!
९. भगत सिंह यद्यपि रक्तपात के पक्षधर
नहीं थे परन्तु वे कार्ल मार्क्स के
सिद्धान्तों से पूरी तरह प्रभावित थे !!
इसी कारण से उन्हें
पूँजीपतियों तथा अंग्रेजों की मजदूरों के
प्रति शोषण की नीति पसन्द
नहीं आती थी !! भगत सिंह चाहते थे
कि अँग्रेजों को पता चलना चाहिये
कि हिन्दुस्तानी जाग चुके हैं और उनके हृदय
में ऐसी नीतियों के प्रति आक्रोश है मगर
उसमें कोई खून-खराबा ना हो !! ८ अप्रैल,
१९२९ को उन्होंने बटुकेश्वर नाथ के साथ
मिल कर केन्द्रीय असेम्बली में एक ऐसे
स्थान पर बम फेंका जहाँ कोई मौजूद न
था !! बम फेंकने के बाद भगत सिंह चाहते
तो भाग भी सकते थे पर उन्होंने पहले
ही सोच रखा था कि उन्हें दण्ड स्वीकार
है चाहें वह फाँसी ही क्यों न हो !! बम
फटने के बाद उन्होंने "इंकलाब
जिन्दाबाद !! साम्राज्यवाद
मुर्दाबाद !!" का नारा लगाया और अपने
साथ लाये हुए पर्चे हवा में उछाल दिये !!
इसके कुछ ही देर बाद पुलिस आ गयी और
दोनों को ग़िरफ़्तार कर लिया गया !!
१०. जेल के अंदर जब कैदियों को ठीक
भोजन नहीं मिलता था और सुविधाएं
जो मिलनी चाहिए थीं, नहीं मिलती थीं,
तो भगतसिंह ने आमरण अनशन किया !!
भगत सिंह व उनके साथियों ने ६४
दिनों तक भूख हडताल की !! उनके एक
साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख
हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिये थे !!
अंततः अंग्रेजों को झुकना पडा !!
११. भगतसिंह को गांधी जी का धीरे धीरे
चलने वाला रास्ता पसंद नहीं था !!
लेकिन भगतसिंह हिंसा के रास्ते पर
नहीं थे !! उनके भरी अदालत में जिस बयान
के कारण उनको फांसी की सजा मिली,
उतना बेहतर बयान आज तक हिंदुस्तान के
किसी भी राजनीतिक कैदी ने
नहीं दिया !!
१२. जब भगत सिंह अंतिम बार अपने
परिवार से मिलें थे, उस समय उन्हें यकीन
हो गया था कि ये उनकी अंतिम मुलाकात
है !! उन्होंने अपने मां से कहा, “बेबेजी,
दादाजी अब ज्यादा दिन तक
नहीं जियेंगे !! आप बंगा जाकर इनके पास
ही रहना !!” सबसे उन्होंने अलग-अलग बात
की !! सबको धैर्य बंधाया, सांत्वना दी !!
अंत में मां को पास बुलाकर हंसते-हंसते
मस्ती भरे स्वर में कहा, ‘‘लाश लेने आप मत
आना !! कुलबीर को भेज देना !! कहीं आप
रो पड़ी तो लोग कहेंगे कि भगत सिंह
की मां रो रही है !! इतना कहकर वे इतने
जोर से हंसे कि जेल अधिकारी उन्हें
फटी आंखों से देखते रह गए !!
१३. फांसी के फंदे पर चढ़ने का फरमान
पहुंचने के बाद जब जल्लाद उनके पास
आया तब वो “राम प्रसाद बिस्मिल”
की जीवनी पढ रहे थे(कुछ
लोगों का मानना है कि वो लेनिन
की जीवनी पढ रहे थे) !! उन्होंने
बिना सिर उठाए हुए उससे
कहा 'ठहरो भाई, मैं राम प्रसात
बिस्मिल की जीवनी पढ़ रहा हूं !! एक
क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल
रहा है !! थोड़ा रुको !!' ऐसा इंसान जिसे
कुछ पलों के बाद फांसी होने वाली है उसके
बावजूद वो किताबें पढ़ रहा है, ये
कल्पना कर पाना भी बेहद मुश्किल है !!
१४. अंततः फांसी के निर्धारित समय से १
दिन पहले २३ मार्च १९३१ को शाम में
करीब ७ बजकर ३३ मिनट पर भगत सिंह
तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु
को फाँसी दे दी गई !! फाँसी पर जाते
समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे -
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे !!
मेरा रँग दे बसन्ती चोला !! माय रँग दे
बसन्ती चोला !!
Thursday, 27 June 2013
बनाएं इस साल को अपनी life का सबसे बड़ा साल >>>

लम्बी छलांग …
2012 बीत चुका है ….और अभी भी दुनिया ख़त्म नहीं हुई …so let’s welcome year 2013. 
Friends, मैं चाहता हूँ आपका ये साल आपकी life का सबसे बड़ा साल हो . And believe me मैं पूरी sincerity के साथ ऐसा चाहता हूँ , मैं जानता हूँ आप इस बात को समझते हैं कि मैं GROWTH देखना चाहता हूँ …आपकी भी और अपनी भी .
“बड़ा” का मतलब क्या है ?
Hmmm , पहला काम यही है आपको अपने लिए इस “बड़ा ” को define करना होगा . ये ऐसा कुछ होगा जो शायद आप बहुत पहले से पाना चाहते होंगे , जिसके बारे में सोचते होंगे , but unfortunately उसे पा नहीं पाते होंगे . आपके लिए बड़ा क्या है ये सिर्फ आप define करेंगे …हो सकता है ये औरों की नज़र में छोटा हो …that does not matter…ये बस आपके लिए बड़ा होना चाहिए …!!
For example:
किसी के लिए बड़ा हो सकता है ….अपना business start करना ….किसी के लिए English बोलना सीखना तो किसी के लिए exam में top करना . जो भी आपके लिए बड़ा है उसे अपने जेहन में बैठा लीजिये …अपनी success diary में लिख लीजिये , उसे अपना बना लीजिये ….क्योंकि अगर आप serious हैं तो ये साल आपके लिए अलग होने वाला है .
“बड़ा ” होने के लिए ज़रूरी नहीं है कि आप किसी end result तक पहुँच जाएं … “बड़ा ” तब भी है अगर आप उस रास्ते पर आगे बढ़ जाते हैं जो आपकी मंजिल तक जाता है .और ये test करने के लिए कि आप सही रास्ते पर हैं कि नहीं आपको हकीकत में हो रहे बदलावों पर ध्यान देना होगा .आपको ध्यान देना होगा कि क्या आपके efforts की बदौलत real world में कुछ ऐसा दिख रहा है जो prove कर सके कि आप सही दिशा में बढ़ रहे हैं .
मैंने 2010 के अंत में AKC की शुरुआत की थी और निश्चय किया था कि मैं इस blog से इतनी income generate कर लूँगा कि मुझे नौकरी करने की ज़रुरत न रहे ! यह मेरे लिए एक बड़ा काम था .
क्या मैं उसे 2011 में achieve कर पाया ?
नहीं .
2012 में ?
नहीं .
तो क्या मैं अपने लिए 2011-2012 को बेकार साल समझूँ ?
नहीं , on the contrary ये तो मेरी life के सबसे productive years थे …मैं इन दो सालों में अपने उस बड़े goal की तरफ बढ़ पाया , और वो काम करते हुए बढ़ पाया जो मुझे बेहद पसंद है —लोगों की मदद करना .
पर मैं इतना sure कैसे हूँ कि मैं सही रास्ते पर हूँ ?
क्योंकि मैं real world में ऐसी चीजें देख सकता हूँ जो ये prove करती हैं . AKC शुरू करने के सवा साल तक मैं इससे 1 रुपया भी नहीं earn कर पाया पर अब मैं इस blog से हर महीने 5 figure income generate करता हूँ . In my opinion मेरे लिए सबसे important time 2011 का ही time था …जब मैं अपनी self-belief और commitment के दम पर काम करते जा रहा था …बिना रुके ..बिना थके .
और अगर आप अभी तक अपने “बड़े काम” की तरफ नहीं बढें हैं तो आप भी अपनी thousands mile की journey एक step के साथ शुरू कीजिये …और जब बाद में आप पीछे मुड़ कर देखेंगे तो महसूस करेंगे कि 2013 आपकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा साल था – आपकी success story का पहला साल .
All the best !
Anjali jais..
IIT Indore
Anjali jais..
IIT Indore
Wednesday, 26 June 2013
एक सलाम इस महान कार्य के लिए >>>>>>
Date:27/ june/2013 By : raj sharma ETV News**
दिल्ली में कचरा बीनने वाले बच्चों ने उत्तराखंड सहायता कोष में २०,००० रूपये की बहुमूल्य राशी दी।
कोई इन्सान छोटा या बङा नहीँ होता । बङा वो ही होता है जो किसी कि विपरित परिस्थतियोँ मेँ अपना योगदान देता है । बस दिल बङा होना चाहिए रूपयोँ वाले तो बहुत होते है ।
एक सलाम इस महान कार्य के लिए

*** Thought AN indian man****
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| Anjali jaiswal IIT Indore from : Indore {m.p.} |
Tuesday, 25 June 2013
Suvichar On Mother
Suvichar On Mother
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| BY: Aalooo:-):-) |
^^^^ सुविचार ^^^^
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| BY: LOkesh meena from: Rajwada , Indore {m.p.} |
^^^^ सुविचार ^^^^
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| Abhishek rajput {IES} from JAipur (raj.) |
Pleasant Personality Develop करने के 10 Tips
हम रोज़ाना बहुत से लोगों से मिलते हैं पर कुछ -एक लोग ही ऐसे होते हैं जो हमें प्रभावित कर जाते हैं . ऐसे लोगों के लिए ही हम कहते हैं कि , the person has got a pleasant personality. ऐसी personality वाले लोग अक्सर खुशहाल होते हैं और उनकी हर जगह respect होती है , उन्हें like किया जाता है , parties में invite किया जाता है और job में इन्हें promotion भी जल्दी मिलता है . Naturally, हम सभी ऐसी personality possess करना चाहेंगे और आज मैं अपने इस article में ऐसे ही 10 points share कर रहा हूँ जो आपको एक आकर्षक व्यक्तित्व पाने में help कर सकते हैं .
1. लोगों को genuinely like करिए :
जब हम किसी से मिलते हैं तो मन में उस person की एक image बना लेते हैं . ये image positive, negative या neutral हो सकती है . पर अगर हम अपनी personality improve करना चाहते हैं तो हमें इस image को intentionally positive बनाना होगा . हमें अपने mind को train करना होगा कि वो लोगों में अच्छाई खोजे बुराई नहीं . ये करना इतना मुश्किल नहीं है , अगर आप mind को अच्छाई खोजने के लिए निर्देश देंगे तो वो खोज निकालेगा .
हमें लोगों के साथ patient होना चाहिए, उनकी किसी कमी या shortcoming से irritate होने की बजाये खुद को उनकी जगह रख कर देखना चाहिए. क्या पता अगर हम भी उन्ही जैसे circumstnaces में पले-बढे होते तो उन जैसे ही होते!!! इसलिए differences को सेलिब्रेट करिए उनसे irritate मत होइये.
Friends, हमारे चारो -तरफ फैली negativity हमें बहुत प्रभावित करती है , हम रोज़ चोरी , धोखा -धडी , fraud की खबरें सुनते हैं और शायद इसी वजह से आदमी का आदमी पर से विश्वास उठता जा रहा है . मैं ये नहीं कहता की आप आँख -मूँद कर लोगों पर trust करिए , पर ये ज़रूर कहूँगा कि आँख -मूँद कर लोगों पर distrust मत करिए . ज्यादातर लोग अच्छे होते हैं ; कम से कम उनके साथ तो होते ही हैं जो उनके साथ अच्छा होता है , आप लोगों के साथ अच्छा बनिए , उन्हें like करिए और बदले में वे भी आपके साथ ऐसा ही करेंगे .
Ralph Waldo Emerson ने कहा भी है , “मैं जिस व्यक्ति से भी मिलता हूँ वह किसी ना किसी रूप में मुझसे बेहतर है.”
तो जब हर कोई हमसे किसी न किसी रूप में बेहतर है तो उसे like तो किया ही जा सकता है!
2. मुसकुराहट के साथ मिलिए :
जब आप अपने best friend से मिलते हैं तो क्या होता है ? आप एक दूसरे को देखकर smile करते हैं , isn’t it ?
मुस्कराना जाहिर करता है कि आप सामने वाले को पसंद करते हैं . यही बात हर तरह की relations में लागू होती है ; इसलिए आप जब भी किसी से मिलें ( of course कुछ exceptions हैं ) तो चहरे पर एक genuine smile लाइए , इससे लोग आपको पसंद करेंगे , आपसे मिलकर खुश होंगे .आपकी मुस्कराहट के जवाब में मुस्कराहट न मिले ऐसा कम ही होगा , और होता भी है तो let it be आपको अपना part अच्छे से play करना है बस .
ये सुनने में काफी आसान लग रहा होगा , करना ही क्या है , बस हल्का सा smile ही तो करना है , बहुत से log naturally ऐसा करते भी हैं ; पर बहुत से लोग इस छोटी सी बात पर गौर नहीं करते , और अगर आप भी नहीं करते तो इसे अपनी practice में लाइए . एक मुस्कुराता चेहरा एक flat या stern face से कहीं अधिक आकर्षक होता है , और आपकी personality को attractive बनाने में बहुत मददगार होता है .
मुस्कुराने से एक और फायदा भी है , as per some research; जब हम अन्दर से खुश होते हैं तो हमारे एक्सटर्नल expressions उसी हिसाब से change हो जाते हैं , हमें देखकर ही लोग समझ जाते हैं कि हम खुश हैं ; और ठीक इसका उल्टा भी सही है , यानि जब हम अपने बाहरी expressions खुशनुमा बना लेते हैं तो उसका असर हमारे internal mood पर भी पड़ता है और वो अच्छा हो जाता है .
So, don’t forget to carry a sweet smile wherever you go.
3. नाम रहे ध्यान :
किसी व्यक्ति के लिए उसका नाम दुनिया के बाकी सभी नामों से ज्यादा importance रखता है . इसिलए जब आप किसी से बात करें तो बीच -बीच में उसका नाम लेते रहिये . Of course अगर व्यक्ति आपसे senior है तो आपको नाम के साथ ज़रूरी suffix या prefix लगाना होगा .
बीच -बीच में नाम लेने से सामने वाला अपनी importance feel करता है और साथ ही आपकी तरफ ध्यान भी अधिक देता है . And definitely वो इस बात से खुश होता है कि आप उसके नाम को importance दे रहे हैं .
Friends, नाम याद रखने में मैं भी थोडा कच्चा था , यहाँ तक कि कई बार नाम जानने के 2 minute बाद ही वो ध्यान से उतर जाता था . ऐसा basically इसलिए होता था क्योंकि मैं नाम याद रखने की कोशिश ही नहीं करता था ; पर अब मैं intentionally एक बार नाम सुनने के बाद उसे याद रखने की कोशिश करता हूँ . आप भी “नाम की महत्ता को समझिये ” , नाम याद रखना आपको एक बहुत बड़ी edge दे देता है .
4. “I” से पहले “You” को रखिये:
आप किसे अधिक पसंद करेंगे : जो अपने मतलब की बात करे या उसे जो आपके मतलब की बात करे ?
Of course आप दूसरा option choose करेंगे …हर एक इंसान पहले खुद को रखने में लगा हुआ है …मैं ऐसा हूँ , मुझे ये अच्छा लगता है , मैं ये करता हूँ ….isn’t it . पर आप इससे अलग करिए आप “I” से पहले “You” को रखिये .
आप कैसे हैं “, आपको क्या अच्छा लगता है ? , आप क्या करते हैं , ?
I bet, ऐसा करने से लोग आपको कहीं अधिक पसंद करेंगे . अगर अपनी बात करूँ तो अगर आप मुझसेAKC के बारे में बात करेंगे तो मैं आपको बहुत पसंद करूँगा. 
सिर्फ actors, cricketers, या writers ही नहीं एक आम आदमी भी audience चाहता है …जब आप एक आम आदमी के audience बनते हैं तो आप उसके लिए ख़ास हो जाते हैं . और जब आप बहुत से लोगों के साथ ऐसा करते हैं तो आप बहुत से लोगों के लिए ख़ास हो जाते हैं and in the process आप एक Person से बढ़कर एक Personality बन जाते हैं , एक ऐसी personality जिसे सभी पसंद करते हैं , जिसका charisma सभी को influence कर जाता है .
5. बोलने से पहले सुनिए:
इसे आप पॉइंट 4 का extension कह सकते हैं . जब आप दूसरे में interest लेते हैं तो इसमें इमानदारी होनी चाहिए . आपने “ आप क्या पसंद करते हैं ?” इसलिए नहीं पूछा कि बस वो जल्दी से अपना जवाब ख़तम करे और आप अपनी राम -कथा सुनाने लग जाएं .
आपको सामने वाले को सिर्फ पहले बोलने का मौका ही नहीं देना है , बल्कि उसकी बात को ध्यान से सुनना भी है और बीच -बीच में उससे related और भी बातें करनी हैं . For ex: अगर कोई कहता है कि उसे घूमने का शौक है , तो आप उससे पूछ सकते हैं कि उसकी favourite tourist destination क्या है , और वहां पर कौन -कौन सी जगह अच्छी हैं .
अच्छे listeners की demand कभी कम नहीं होती आप एक अच्छा listener बनिए और देखिये कि किस तरह आपकी demand बढ़ जाती है .
6. क्या कहते हैं से भी ज़रूरी है कैसे कहते हैं :
आप जो बोलते हैं उससे भी अधिक महत्त्व रखता है कि आप कैसे बोलते हैं . For ex. आपसे कोई गलती हुई और आप मुंह बना कर sorry बोलते हैं तो उस sorry का कोई मतलब नहीं . हमें न सिर्फ सही words use करने हैं बल्कि उन्हें किस तरह से कहा जा रहा है इस बात का भी ध्यान रखना है .
इसलिए आप अपनी tone और body language पे ध्यान दीजिये , जितना हो सके polite और well-mannered तरीके से लोगों से बात करिए .
यहाँ मैं ये भी कहना चाहूँगा कि बहुत से लोग English बोलने की ability को Personality से relate कर के देखते हैं , जबकि ऐसा नहीं है , आप बिना A,B,C जाने भी एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले इंसान बन सकते हैं .
7. बिना अपना फायदा सोचे लोगों की help करिए :
कई बार हम ऐसी स्थिति में होते हैं कि दूसरों की help कर सकें , पर out of laziness या फिर ये सोचकर कि इसमें हमारा कोई फायदा नहीं है हम help नहीं करते . पर एक pleasant personality वाला व्यक्ति लोगों की help के लिए तैयार रहता है . हाँ , इसका ये मतलब नहीं है कि आप अपने ज़रूरी काम छोड़ कर बस लोगों की help ही करते रहे , लेकिन अगर थोडा वक़्त देने पर आप किसी के काम आ सकते हैं तो ज़रूर आएं . आपकी एक selfless help आपको दूसरों की ही नहीं अपनी नज़रों में भी उठा देगी और आप अच्छा feel करेंगे .
आपने सुना भी होगा ; “A little bit of fragrance always clings to the hands that gives you roses”
8. अपने external appearance को अच्छा बनाइये :
चूँकि हमारा पहला impression हमारी appearance की वजह से ही बनता है इसलिए इस point पर थोडा ध्यान देने की ज़रुरत है .
Appearance से मेरा ये मतलब नहीं है कि आप Gym जाने लगिए और body बनाइये , या फिर beauty –parlour के चक्कर लगाते रहिये , it simply means कि आप occasion के हिसाब से dress-up होइये और personal hygiene पर ध्यान द्जिये . छोटी –छोटी बातें जैसे कि आपका hair-cut , nails और polished shoe आपकी personality पर प्रभाव डालते हैं .
9. क्या appreciate कर सकते हैं खोजिये :
चाहे मैं हूँ , आप हों , या फिर Mr. Bachchan , तारीफ सुनना सबको पसंद है . लोगों का दिल जीतने का और अपना friend बनाने का ये एक शानदार formula है …प्रशंशा कीजिये , सच्ची प्रशंशा कीजिये .
India में ना जाने क्यों किसी की तारीफ़ करना इतना कठिन हो जाता है … शादियों में जो ऑर्केस्ट्रा होती है उसमे ज़रूर गए होंगे ….बेचारा गायक एक शानदार गीत गाता है है और तालियाँ बजाने की बजाये लोग एक -दूसरे के चेहरे देखने लगते हैं …; अच्छा हुआ मैं orchestra में नहीं गाता नहीं तो ऐसी audience की वजह से depression में चला जाता . 
खैर , मैं यहाँ individual level पे praise करने की बात कर रहा हूँ . अगर आप खोजेंगे तो हर इंसान में आपको तारीफ करने के लिए कुछ न कुछ दिख जाएगा ….वो कुछ भी हो सकता है …उसका garden, coins का collection, बढियां से सजाया कमरा , उसकी smile, उसका नाम , कुछ भी , खोजिये तो सही आपको दिख ही जायेगा . और जब दिख जाए तो दब्बू बन कर मत बैठे रहिये , किसी की तारीफ़ करके आप उसे वो देंगे जो वो दिल से चाहता है …आप उसकी ख़ुशी को बढ़ा देंगे , उसका दिन बना देंगे , और सबसे बड़ी चीज आप उसे वो काम आगे भी carry करने के लिए fuel दे देंगे . अगर सामने बोलने से हिचकते हैं तो बाद में एक sms कर दीजिये , मेल से बता दीजिये , पर अगर कुछ praiseworthy है तो उसे praise ज़रूर करिए .
हाँ अगर बहुत कोशिश करने पर भी वो ना मिले तो don’t try to fake it…बच्चे भी समझ जाते हैं कि आप सच्ची तारीफ कर रहे हैं या झूठी .
10. लगातार observe और improve करते रहिये :
Personality development एक on-going process है . हम सब में improvement का infinite scope है , इसलिए कभी ये मत समझिये कि बस अब जिंतना improvement होना था हो गया , बल्कि अपने लिए कुछ समय निकाल कर अपनी activities, अपने words को minutely observe करिए , आपने क्या किया , आप उसे और अच्छा कैसे कर सकते हैं , कहीं ऐसा तो नहीं कि आप किसी चीज को लेकर खुद को तीस-मारखां समझ रहे हैं और हकीकत में लोग आपकी इस बात को पसंद नहीं करते .
For ex. कुछ साल पहले मैंने realize किया कि लोगों में जल्दी improvement लाने के चक्कर में मैं इतने अधिक mistakes point out कर देता कि उनका confidence कम हो जाता ; so I improved on this point और अब मैं patiently ये काम करता हूँ .आप भी इस रास्ते पर बढ़ते हुए खुद को observe करते चलिए , और लगातार improve करते जाइये .
I hope ये 10 बातें आपको अपनी personality pleasant बनाने में help करेंगी .
अब क्या करना है ?
अब आपको इन दस बातों की बारी-बारी से प्रैक्टिस करनी है. To start with आप अपनी पसंद का कोई एक point choose कर लें , ध्यान रहे कि एक बार में सिर्फ और सिर्फ एक point पर ही focus करना है . Choose करने के बाद इसे real life में apply करें . अपनी day-today activities में खुद पर नज़र रखें और देखें कि आप सचमुच उसे apply कर पा रहे हैं या नहीं . जब एक हफ्ते ऐसा कर लें तो दूसरे point को उठाएं और अब उसकी practice करें . इस दौरान आप पहले point को भी apply करते रहे , पर अगर वो miss भी हो जाता है to don’t worry फिलहाल आपका focus point 2 है , और वो नहीं miss होना चाहिए .
इसी तरह से आप बाकी points की भी practice करते रहिये , और कुछ ही महीनो में आप पाएंगे कि एक साथ सारी बातों पर ध्यान दे पा रहे हैं . Just be patient and keep on moving , and surely आप जल्द ही एक pleasant personality के मालिक होंगे .
All the best!
by:: raj sharma {jamuu & kasmir}
thnkx for HL Foundation
$दर्द सुविचार$
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| इससे यह सिद्ध हुआ की किसी पर निर्भर मत रहो..>>> |
एक कोशिश >>>>आओ चले नया भारत बनाये>>>>
hlfoundation93@gmail.com 

आप लोगो का स्वागत हे !!!
HL foundation मे
अपनी समास्या हमे भेजे...
कोशिश कि जायेगी कि जल्द से जल्द पुरी हो,,,
धन्यवाद
आपका अपना >>>>
HL members :-) :-)
यह हमारा पता हे>>>
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भारत का सर्वप्रमुख धर्म हिन्दू धर्म है !!!
भारत का सर्वप्रमुख धर्म हिन्दू धर्म है, जिसे इसकी प्राचीनता एवं विशालता के कारण 'सनातन धर्म' भी कहा जाता है। ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के समान हिन्दू धर्म किसी पैगम्बर या व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित धर्म नहीं है, बल्कि यह प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों, मतमतांतरों, आस्थाओं एवं विश्वासों का समुच्चय है। एक विकासशील धर्म होने के कारण विभिन्न कालों में इसमें नये-नये आयाम जुड़ते गये। वास्तव में हिन्दू धर्म इतने विशाल परिदृश्य वाला धर्म है कि उसमें आदिम ग्राम देवताओं, भूत-पिशाची, स्थानीय देवी-देवताओं, झाड़-फूँक, तंत्र-मत्र से लेकर त्रिदेव एवं अन्य देवताओं तथा निराकार ब्रह्म और अत्यंत गूढ़ दर्शन तक- सभी बिना किसी अन्तर्विरोध के समाहित हैं और स्थान एवं व्यक्ति विशेष के अनुसार सभी की आराधना होती है। वास्तव में हिन्दू धर्म लघु एवं महान परम्पराओं का उत्तम समन्वय दर्शाता है। एक ओर इसमें वैदिक तथा पुराणकालीन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना होती है, तो दूसरी ओर कापलिक और अवधूतों द्वारा भी अत्यंत भयावह कर्मकांडीय आराधना की जाती है। एक ओर भक्ति रस से सराबोर भक्त हैं, तो दूसरी ओर अनीश्वर-अनात्मवादी और यहाँ तक कि नास्तिक भी दिखाई पड़ जाते हैं। देखा जाय, तो हिन्दू धर्म सर्वथा विरोधी सिद्धान्तों का भी उत्तम एवं सहज समन्वय है। यह हिन्दू धर्मावलम्बियों की उदारता, सर्वधर्मसमभाव, समन्वयशीलता तथा धार्मिक सहिष्णुता की श्रेष्ठ भावना का ही परिणाम और परिचायक है।हिन्दू धर्म के स्रोत
हिन्दू धर्म की परम्पराओं का अध्ययन करने हेतु हज़ारों वर्ष पीछे वैदिक काल पर दृष्टिपात करना होगा। हिन्दू धर्म की परम्पराओं का मूल वेद ही हैं। वैदिक धर्म प्रकृति-पूजक, बहुदेववादी तथा अनुष्ठानपरक धर्म था। यद्यपि उस काल में प्रत्येक भौतिक तत्त्व का अपना विशेष अधिष्ठातृ देवता या देवी की मान्यता प्रचलित थी, परन्तु देवताओं में वरुण, पूषा, मित्र, सविता, सूर्य, अश्विन, उषा, इन्द्र, रुद्र, पर्जन्य, अग्नि, वृहस्पति, सोम आदि प्रमुख थे। इन देवताओं की आराधना यज्ञ तथा मंत्रोच्चारण के माध्यम से की जाती थी। मंदिर तथा मूर्ति पूजा का अभाव था। उपनिषद काल में हिन्दू धर्म के दार्शनिक पक्ष का विकास हुआ। साथ ही एकेश्वरवाद की अवधारणा बलवती हुई। ईश्वर को अजर-अमर, अनादि, सर्वत्रव्यापी कहा गया। इसी समय योग, सांख्य, वेदांत आदि षड दर्शनों का विकास हुआ। निर्गुण तथा सगुण की भी अवधारणाएं उत्पन्न हुई। नौंवीं से चौदहवीं शताब्दी के मध्य विभिन्न पुराणों की रचना हुई। पुराणों में पाँच विषयों (पंच लक्षण) का वर्णन है-
- सर्ग (जगत की सृष्टि),
- प्रतिसर्ग (सृष्टि का विस्तार, लोप एवं पुन: सृष्टि),
- वंश (राजाओं की वंशावली),
- मन्वंतर (भिन्न-भिन्न मनुओं के काल की प्रमुख घटनाएँ) तथा
- वंशानुचरित (अन्य गौरवपूर्ण राजवंशों का विस्तृत विवरण)।
इस प्रकार पुराणों में मध्य युगीन धर्म, ज्ञान-विज्ञान तथा इतिहास का वर्णन मिलता है। पुराणों ने ही हिन्दू धर्म में अवतारवाद की अवधारणा का सूत्रपात किया। इसके अलावा मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा, व्रत आदि इसी काल के देन हैं। पुराणों के पश्चात् भक्तिकाल का आगमन होता है, जिसमें विभिन्न संतों एवं भक्तों ने साकार ईश्वर की आराधना पर ज़ोर दिया तथा जनसेवा, परोपकार और प्राणी मात्र की समानता एवं सेवा को ईश्वर आराधना का ही रूप बताया। फलस्वरूप प्राचीन दुरूह कर्मकांडों के बंधन कुछ ढीले पड़ गये। दक्षिण भारत के अलवार संतों, गुजरात में नरसि मेहता, महाराष्ट्र में तुकाराम, पश्चिम बंगाल में चैतन्य, उत्तर में तुलसी, कबीर, सूर औरगुरु नानक के भक्ति भाव से ओत-प्रोत भजनों ने जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।
Abraham Lincoln
..31 वे साल में वो Business में fail हो गया. 32 वें साल में वो state legislator का चुनाव हार गया, 33 वें साल में उसने एक नया business try किया, और फिर fail हो गया. 35 वें साल में उसकी मंगेतर का निधन हो गया. 36 वें साल में उसका nervous break-down हो गया. 43 वें साल में उसने कांग्रेस के लिए चुनाव लड़ा पर हार गया, 48 वें साल में उसने फिर कोशिस की पर हार गया. 55 वें साल में उसने Senate के लिए चुनाव लड़ा पर हार गया, अगले साल उसने Vice President के लिए चुनाव लड़ा पर हार गया. 59 वें साल में उसने फिर से Senate के लिए चुनाव लड़ा पर हार गया. 1860 में वो आदमी जो Abraham Lincoln था अमेरिका का 16 वाँ राष्ट्रपति बना.
अब्राहम लिंकन जी की सफलता इस बात का प्रमाण है, कि "लहरों के डर से नौका पार नही होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती, और निकम्मों की कभी जय-जयकार नहीं होती".
Monday, 24 June 2013
HISTORY of {सहस्त्रार्जुन} jaiswal SAmaj >>>>>
भारतवर्ष एक महान परम्पराओं का देश है। आज भी यहां के सामाजिक जीवन के रंगो में प्रचीन वंशो का रक्त उनके कुल गौरव एवम् सांस्कृतिक गरिमा को अन्तर्हित करते हुए प्रवाहमान है। जिन अनेक मूल-पुरूषों के नाम से इस राष्ट्र का सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन जाना जाता है, उनमें श्री सहस्त्रार्जुन का नाम भारत की अनेक जातियां अत्यंत श्रद्धा से स्मरण करती है। हमारे अराध्य राज राजेश्वर श्री सहस्त्रार्जुन जी की समाधि एवं मन्दिर नमर्दा नदी के किनारे महेश्वर, इंदौर से 90 कि.मी. दूरी पर स्थित है। समाधि पर शिवलिंग स्थापित है। हजारों वषों से अखण्ड 11 नन्दा द्वीप मंदीर में प्रज्जवलित है। भारत का विशाल जायसवाल समाज भी स्वयं को हैहय चंन्द्रवंशीय क्षत्रिय मानकर श्री सहस्त्रार्जुन को अपना अराध्य मानता है। प्राचिन और मध्यकालीन भारत की राजनीति, कला एवं स्थापत्य में हैहय और उनके कलचुरी वशंजों का विशिष्ट योगदान रहा है। कलचुरी वशंजों ने लगभग 800 वर्ष (1075 से 1800 ई.) तक अनवरत शासन किया है। वर्तमान छत्तीसगढ स्थित बिलासपुर से मात्र 28 कि.मी. दूर रतनपुर में तत्कालीन कलचुरि नरेशों द्वारा स्थापित उनकी कुलदेवी महामाया का विशाल मंदीर है। आज भी जिसके दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। कलचुरि नरेश का इतिहास गौरवशाली इतिहास जबलपुर के रानी दुर्गावती संग्राहलय में संग्रहित है। तत्कालीन कलचुरि नरेश के दो बेटे 18-18 गढ के शासक थे। दोनो सम्राज्य मिलकर वर्तमान छत्तीसगढ प्रदेश हैं।
भागवत पुराण, मतस्यपुराण, विष्णुपुराण, वायुपुराण महाकाव्यों से हैहय वंश का प्ररंभिक इतिहास ज्ञात होता है। हैहय-जन चन्द्रवंश की यदु कुलीन परम्परा से संबंधित रहे हैं। महाभारत-युद्ध से कई शताब्दियों पूर्व मनु परम्परा में सातवें मनु वैवस्तव का शासन प्रारंभ हुआ। यह मनुविवस्वान (सर्य) के पुत्र थे। जिससे सूर्यकुल का प्रादुर्भाव हुआ। मनु की एक मात्र पुत्री इला का विवाह सोम (चंद्रमा) के पुत्र बुध से हुआ था जिससे चन्द्रवंश का प्ररम्भ हुआ। उनके वंश के क्रम से पुरूरवा, ओयु, नहुष एवं ययाति हुए। ययाति के पांच पुत्र युदु , तर्वसु , पुरू , अनु व द्रहयु हुए। बङे पुत्र यदु से यादव वंश चला। यदु के दो प्रमुख पुत्र क्रोष्टु एवं सहस्त्राजीत थे। सहस्त्राजीत मनु से आठवीं पीढी में हुए। उनकी तीन पीढी उपरान्त शतजित नामक राजा हुए।
भागवत पुराण, मतस्यपुराण, विष्णुपुराण, वायुपुराण महाकाव्यों से हैहय वंश का प्ररंभिक इतिहास ज्ञात होता है। हैहय-जन चन्द्रवंश की यदु कुलीन परम्परा से संबंधित रहे हैं। महाभारत-युद्ध से कई शताब्दियों पूर्व मनु परम्परा में सातवें मनु वैवस्तव का शासन प्रारंभ हुआ। यह मनुविवस्वान (सर्य) के पुत्र थे। जिससे सूर्यकुल का प्रादुर्भाव हुआ। मनु की एक मात्र पुत्री इला का विवाह सोम (चंद्रमा) के पुत्र बुध से हुआ था जिससे चन्द्रवंश का प्ररम्भ हुआ। उनके वंश के क्रम से पुरूरवा, ओयु, नहुष एवं ययाति हुए। ययाति के पांच पुत्र युदु , तर्वसु , पुरू , अनु व द्रहयु हुए। बङे पुत्र यदु से यादव वंश चला। यदु के दो प्रमुख पुत्र क्रोष्टु एवं सहस्त्राजीत थे। सहस्त्राजीत मनु से आठवीं पीढी में हुए। उनकी तीन पीढी उपरान्त शतजित नामक राजा हुए।
शतजित से हैहय, हय एवं बेणुहय नामक तीन पुत्र हुए। संभवत: उनके नाम पर सुप्रसिद्ध हैहय वंश चला। उनके उपरान्त उनके वंश में धर्मनत्र, कुन्ति, साहंज एवं महिष्मन्त नामक राजा हुए। महिष्मन्त ने नर्मदा में महिष्मति (आधुनिक महेश्वर) नामक नगर बसाया। यही नगर हैहय नृपतियों की राजधानी बनी। नागों ने अपनी एक राजकुमारी नर्मदा का विवाह अयोध्या के शक्तिशाली राजकुमार पुरूकुत्स से करके सूर्यवंशी इक्ष्वाकु शक्ति का मालवा व निमाङ क्षेत्र में राजनीतिक प्रभाव स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। यह स्थिति देख चंद्रवंशी यदुकुलीन हैहयों ने गंधर्वों से हाथ मिला लिया। उनके वीर पुरूष महिष्मन्त ने इक्ष्वाकुओं से यह क्षेत्र छीनकर एक शक्तिशाली हैहय सम्राज्य की नींव डाली उसके उत्तराधिकारी भद्रश्रेण्य और भी प्रतापी हुए। उन्होंने एक ओर तो पौरवों को परास्त किया, दूसरी तरफ काशी पर अधिप्त्य स्थापित किया।
दुर्दुम के उपरान्त कनक के चार पुत्रों में सबसे बङे कुतवीर्य ने महिष्मती के सिंहासन का उत्तराधिकार प्राप्त किया। यह एक शिष्ट एवं सौम्य नृपति थे। भार्गव वंशी ब्राह्मण इनके राज पुरोहित थे। भार्गव नेता जमदाग्नि ॠषि से इनके मधुर संबंध थे। कृतवीर्य ने उन्हें कपिला नामक धेनु दान में दी थी। कृतवीर्य के पुत्र अर्जुन थे। कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्त्तवीर्याजुन भी कहा गया। कार्त्तवीर्याजुन भरतीय इतिहास एवं हैहय वंश के एक अत्यंत उल्लेखनीय एवं प्रतापी शासक सिद्ध हुए।
कार्त्तवीर्याजुन का सांस्कृतिक योगदान कम नहीं है। ये एक महान तांत्रिक थे। उनके द्वारा प्रवर्तित कार्त्तवीर्य तंत्र बङा प्रसिद्ध हुआ। एक बार अपनी रानियों के साथ जलक्रीङा करते हुए उन्होंने नर्मदा के बहाव को विपरीत दिशा में मोङ दिया था जिस कारण लंकेश्वर की पूजा सामग्री बह गयी थी। रावण ने क्रोध में सहस्त्रबाहू पर आक्रमण कर दिया था। रावण पराजित होकर ३ माह उनके बंदीगृह में पङा रहा। अंतत: महर्षि पुलस्य एवं राजमाता की मध्यस्थता से ही वह मुक्त हो सका।
कार्त्तवीर्याजुन ने अपनी अराधना से भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न किया था। भगवान दत्तात्रेय ने युद्ध के समय सहस्त्रार्जुन को हजार हाथों का बल प्राप्त करने का वरदान दिया था। इस कारण उसका नाम श्री सहस्त्रार्जुन पङा।
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श्री सहस्त्रार्जुन का नाम भारत की अनेक जातियां अत्यंत श्रद्धा से स्मरण करती है। हमारे अराध्य राज राजेश्वर श्री सहस्त्रार्जुन जी की समाधि एवं मन्दिर नमर्दा नदी के किनारे महेश्वर, इंदौर से 90 कि.मी. दूरी पर स्थित है। समाधि पर शिवलिंग स्थापित है। हजारों वषों से अखण्ड 11 नन्दा द्वीप मंदीर में प्रज्जवलित है। भारत का विशाल जायसवाल समाज भी स्वयं को हैहय चंन्द्रवंशीय क्षत्रिय मानकर श्री सहस्त्रार्जुन को अपना अराध्य मानता है। प्राचिन और मध्यकालीन भारत की राजनीति, कला एवं स्थापत्य में हैहय और उनके कलचुरी वशंजों का विशिष्ट योगदान रहा है। कलचुरी वशंजों ने लगभग 800 वर्ष (1075 से 1800 ई.) तक अनवरत शासन किया है। वर्तमान छत्तीसगढ स्थित बिलासपुर से मात्र 28 कि.मी. दूर रतनपुर में तत्कालीन कलचुरि नरेशों द्वारा स्थापित उनकी कुलदेवी महामाया का विशाल मंदीर है।
पुराणों में उल्लेख है कि श्री सहस्त्रार्जुन सात दीपों हैहय क्षत्रिय विघटित होकर 100 से भी अधिक वर्गों में बट गये। इनकी जनसंख्या लगभग बारह करोङ है हैहय जायसवाल समाज भी उनमें से एक है जो अपने गौरवशाली अतीत को समेटे हुए आज भी अपने आदि देव श्री सहस्त्रार्जुन की स्मृति को जीवित
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